आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में डायबिटीज (Diabetes) एक ऐसी बीमारी बन चुकी है, जो न सिर्फ बुजुर्गों बल्कि युवाओं और बच्चों तक को प्रभावित कर रही है। इसे “मधुमेह” भी कहा जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर सही तरीके से शुगर (ग्लूकोज़) को ऊर्जा में बदल नहीं पाता।
शुगर हमारे शरीर का मुख्य ईंधन है। जब हम खाना खाते हैं तो शरीर उस भोजन को पचाकर ग्लूकोज़ में बदल देता है। ये ग्लूकोज़ खून के जरिए शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचता है। कोशिकाओं में ग्लूकोज़ को ऊर्जा में बदलने के लिए एक हार्मोन की ज़रूरत होती है जिसे इंसुलिन कहते हैं। इंसुलिन हमारे शरीर के पैनक्रियास (अग्न्याशय) से निकलता है।
डायबिटीज तब होती है जब:
1. शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है, या
2. इंसुलिन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनता, या
3. शरीर की कोशिकाएँ इंसुलिन को सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पातीं।
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इस कारण खून में ग्लूकोज़ का स्तर सामान्य से ज्यादा बढ़ जाता है, जिसे हम हाई ब्लड शुगर कहते हैं। अगर यह लंबे समय तक बना रहे तो शरीर के कई अंग जैसे आँखें, किडनी, हृदय, नसें और त्वचा प्रभावित होने लगती हैं।
डायबिटीज के प्रकार
डायबिटीज कई प्रकार की हो सकती है। मुख्य रूप से इसे चार बड़े वर्गों में बाँटा जाता है:
1. टाइप-1 डायबिटीज
• यह डायबिटीज बच्चों और युवाओं में अधिक देखी जाती है।
• इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) गलती से अग्न्याशय की उन कोशिकाओं पर हमला कर देती है जो इंसुलिन बनाती हैं।
• परिणामस्वरूप इंसुलिन बिल्कुल बनना बंद हो जाता है।
• टाइप-1 डायबिटीज वाले व्यक्ति को जीवनभर इंसुलिन इंजेक्शन लेना पड़ता है।
2. टाइप-2 डायबिटीज
• यह सबसे सामान्य प्रकार है और दुनियाभर के लगभग 90% मरीज इसी प्रकार से प्रभावित होते हैं।
• इसमें शरीर इंसुलिन बनाता तो है, लेकिन कोशिकाएँ उसे सही से उपयोग नहीं कर पातीं। इस स्थिति को “इंसुलिन रेसिस्टेंस” कहते हैं।
• यह ज्यादातर 40 साल के बाद के लोगों में दिखती है, लेकिन बदलती जीवनशैली के कारण अब यह युवाओं और बच्चों में भी बढ़ रही है।
• मोटापा, असंतुलित खान-पान, तनाव और शारीरिक श्रम की कमी इसके प्रमुख कारण हैं।
3. गर्भावधि डायबिटीज (Gestational Diabetes)
• यह केवल गर्भवती महिलाओं में होता है।
• गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण शुगर का स्तर बढ़ जाता है।
• अधिकतर मामलों में बच्चे के जन्म के बाद यह समस्या खत्म हो जाती है, लेकिन ऐसी महिलाओं में भविष्य में टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
4. अन्य प्रकार
• प्रिडायबिटीज: इसमें शुगर का स्तर सामान्य से अधिक होता है, लेकिन डायबिटीज की सीमा तक नहीं पहुँचता। यदि सावधानी न बरती जाए तो यह आगे चलकर टाइप-2 डायबिटीज में बदल सकता है।
• मोनोजेनिक डायबिटीज: यह आनुवंशिक कारणों से होता है।
• सेकंडरी डायबिटीज: कुछ अन्य बीमारियों या दवाओं के प्रभाव से भी डायबिटीज हो सकती है।
डायबिटीज के मुख्य कारण
डायबिटीज के कारण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सामान्य रूप से कुछ मुख्य वजहें हैं:
1. अनुवांशिक कारण (Genetic Factors): अगर परिवार में किसी को डायबिटीज है तो इसके होने की संभावना अधिक होती है।
2. असंतुलित खानपान: अत्यधिक तेल, तला-भुना, फास्ट फूड और मीठा खाने से खतरा बढ़ता है।
3. मोटापा: मोटापे से शरीर में इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
4. शारीरिक गतिविधि की कमी: जो लोग व्यायाम नहीं करते या लंबे समय तक बैठे रहते हैं, उनमें डायबिटीज का खतरा अधिक रहता है।
5. तनाव: लगातार मानसिक तनाव हार्मोनल असंतुलन पैदा करता है, जिससे शुगर का स्तर बढ़ सकता है।
6. अन्य बीमारियाँ: जैसे हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की समस्या भी डायबिटीज से जुड़ी होती है।
डायबिटीज के लक्षण
डायबिटीज के शुरुआती लक्षण अक्सर हल्के होते हैं, इसलिए लोग ध्यान नहीं दे पाते। लेकिन समय रहते पहचानना बहुत जरूरी है। इसके प्रमुख लक्षण हैं:
1. बार-बार पेशाब आना।
2. बहुत ज्यादा प्यास लगना।
3. बिना वजह वजन घटना।
4. अत्यधिक थकान महसूस होना।
5. घाव या चोट का देर से भरना।
6. आँखों की रोशनी धुंधली होना।
7. बार-बार संक्रमण होना (त्वचा, दाँत या मूत्र मार्ग)।
8. हाथ-पैरों में झुनझुनी या सुन्नपन।
अगर ये लक्षण लंबे समय तक बने रहें तो तुरंत ब्लड शुगर की जाँच करानी चाहिए।
डायबिटीज से होने वाले खतरे
अगर डायबिटीज का इलाज समय पर न किया जाए तो यह कई गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है, जैसे:
• हृदय रोग और स्ट्रोक
• किडनी फेल होना
• आँखों की रोशनी कम होना या अंधापन
• नसों को नुकसान (न्यूरोपैथी)
• पैरों में घाव और इंफेक्शन
• गर्भवती महिलाओं में बच्चे पर असर
डायबिटीज का इलाज
डायबिटीज का इलाज पूरी तरह से इसे खत्म करने के लिए नहीं बल्कि इसे नियंत्रित रखने के लिए होता है। यदि सही खान-पान, दवाओं और जीवनशैली का पालन किया जाए तो मरीज सामान्य जीवन जी सकता है।
1. जीवनशैली में बदलाव
• नियमित व्यायाम करना (जैसे चलना, योग, साइकिलिंग)।
• वजन को नियंत्रित रखना।
• धूम्रपान और शराब से बचना।
• तनाव कम करने के लिए ध्यान और मेडिटेशन करना।
2. सही खान-पान
• भोजन में हरी सब्जियाँ, दालें, सलाद और फल शामिल करें।
• ज्यादा मीठा, तला-भुना और फास्ट फूड से बचें।
• चावल और आलू जैसी चीज़ें सीमित मात्रा में खाएँ।
• अधिक पानी पिएँ।
3. दवाइयाँ और इंसुलिन
• टाइप-1 डायबिटीज में इंसुलिन इंजेक्शन जीवनभर लेना जरूरी होता है।
• टाइप-2 डायबिटीज में शुरुआती अवस्था में दवाओं से नियंत्रण किया जा सकता है। यदि स्थिति बिगड़ जाए तो इंसुलिन की भी ज़रूरत पड़ सकती है।
4. नियमित जाँच
• ब्लड शुगर लेवल की नियमित जाँच करें।
• समय-समय पर डॉक्टर से चेकअप करवाएँ।
• ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की भी निगरानी रखें।
डायबिटीज से बचाव के उपाय
हालांकि टाइप-1 डायबिटीज को रोका नहीं जा सकता, लेकिन टाइप-2 डायबिटीज से बचाव संभव है। इसके लिए:
• संतुलित और हेल्दी डाइट लें।
• रोज़ाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें।
• धूम्रपान और शराब से दूरी बनाएँ।
• वजन को नियंत्रित रखें।
• पर्याप्त नींद लें और तनाव से दूर रहें।
डायबिटीज आज के समय में एक गंभीर लेकिन नियंत्रित की जाने वाली बीमारी है। यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करती है, लेकिन अगर सही समय पर पहचानकर इसका इलाज किया जाए तो इसके असर को कम किया जा सकता है। नियमित जांच, सही खानपान, व्यायाम और डॉक्टर की सलाह पर चलकर मरीज सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है।
ये लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। यदि आपको डायबिटीज के कोई भी लक्षण महसूस हों, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और उनकी सलाह के अनुसार ही उपचार करें।