नेपाल की राजधानी काठमांडू इस समय सरकार विरोधी प्रदर्शनों से हिल गई है। हजारों नागरिक सड़कों पर उतरकर भ्रष्टाचार और हाल ही में लगाए गए सोशल मीडिया प्रतिबंध का विरोध कर रहे हैं। प्रदर्शन इतना हिंसक हो गया कि अब तक 18 लोगों की मौत और 250 से अधिक घायल होने की खबर है। यह स्थिति नेपाल के लोकतांत्रिक ढांचे और सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई?
नेपाल में भ्रष्टाचार लंबे समय से सबसे बड़ी समस्या है। सरकारी दफ्तरों से लेकर बड़े प्रोजेक्ट्स तक रिश्वत और घोटालों की खबरें आती रही हैं। आम जनता महंगाई, बेरोजगारी और खराब सुविधाओं से परेशान है।
इसी बीच सरकार ने अचानक फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बंद करने का आदेश दिया। सरकार का तर्क था कि इन माध्यमों से अफवाहें फैल रही थीं। लेकिन लोगों ने इसे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मान लिया और विरोध शुरू कर दिया।
प्रदर्शनकारियों की नाराज़गी
सड़कों पर उतरे लोगों का कहना है कि सरकार ने उनके जीवन को मुश्किल बना दिया है। एक प्रदर्शनकारी ने कहा:
“भ्रष्टाचार ने हमारी कमाई खत्म कर दी, नौकरी नहीं है और अब बोलने का हक भी छीन लिया गया। यही वजह है कि हम आंदोलन कर रहे हैं।”
अस्पतालों में घायलों का इलाज जारी है। स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि कई लोगों की हालत गंभीर है। कई सामाजिक संगठन भी मदद के लिए आगे आए हैं।
पुलिस की कार्रवाई और तनाव
प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज, आंसू गैस और कई जगह गोली तक चलाई। इससे भीड़ और भड़क गई। कई इलाकों में कर्फ्यू जैसी स्थिति बना दी गई और इंटरनेट सेवाओं पर भी सख्त नियंत्रण लगाया गया।
युवाओं की बड़ी भूमिका
इस आंदोलन में युवाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा है। नेपाल की आधी से अधिक आबादी युवा है। सोशल मीडिया उनके लिए सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि अपनी राय रखने और जानकारी पाने का जरिया था। जब सरकार ने इसे बंद कर दिया, तो वे सबसे पहले विरोध में उतर आए। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्रों ने भी आंदोलन में जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई।
आंदोलन की मुख्य मांगें
लोगों ने साफ कर दिया है कि आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं। प्रमुख मांगें हैं:
- सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध तुरंत हटाए जाएं।
- भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून और कार्रवाई हो।
- पुलिस कार्रवाई में मारे गए और घायल लोगों को न्याय और मुआवजा मिले।
- रोजगार और शिक्षा व्यवस्था में सुधार किया जाए।
- जनता को लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी दी जाए।
सरकार का पक्ष
सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया पर लगी रोक “राष्ट्रीय सुरक्षा” के लिए ज़रूरी थी। अधिकारियों का दावा है कि इन प्लेटफॉर्म्स से गलत खबरें फैलाकर हिंसा भड़काई जा रही थी। लेकिन विपक्ष और नागरिक संगठनों का आरोप है कि सरकार सिर्फ लोगों की आवाज दबाना चाहती है।
आगे की स्थिति
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार ने जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन और भी फैल सकता है। काठमांडू से शुरू हुआ यह गुस्सा पूरे देश में फैलने की संभावना रखता है।
नेपाल में जो स्थिति बनी है, वह केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध का परिणाम नहीं है। यह वर्षों से जमा हुई जनता की नाराज़गी का विस्फोट है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई और अधिकारों की अनदेखी ने लोगों को मजबूर कर दिया है कि वे सड़कों पर उतरें। आने वाले दिनों में यह आंदोलन नेपाल की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है।