Fact About Death of Monkeys: हिंदू धर्म में बंदरों को हनुमान जी का स्वरूप माना गया है। धार्मिक ग्रंथों और लोककथाओं में बंदरों से जुड़ी कई रोचक और रहस्यमयी बातें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं। यह भी कहा जाता है कि मनुष्य के बाद अगर किसी जीव का बौद्धिक विकास सबसे अधिक हुआ है, तो वह बंदर है। बंदरों को लेकर अनेक मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक मान्यता यह है कि बंदर कभी खुले में या सबके सामने मृत्यु को प्राप्त नहीं होते, बल्कि वे हमेशा एकांत स्थान का चयन करते हैं। यह विषय लोगों के बीच लंबे समय से चर्चा का केंद्र रहा है। आइए इसे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोणों से समझते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार
सनातन धर्म और विशेषकर रामायण काल से जुड़ी कथाओं के अनुसार, वानर सेना ने भगवान श्रीराम से एक वरदान मांगा था। इस वरदान के अनुसार, कोई भी वानर कभी सबके सामने मृत्यु को प्राप्त न हो। इसके अलावा, उन्हें यह शक्ति भी प्राप्त हुई कि मृत्यु का समय आने से कम से कम एक सप्ताह पहले ही उन्हें इसका आभास हो जाए।
यही कारण बताया जाता है कि बंदर मृत्यु से पहले एक सुरक्षित स्थान खोज लेते हैं और वहां जाकर शांत बैठ जाते हैं। वे भोजन और पानी का त्याग कर देते हैं और देह का अंत कर लेते हैं।
एक अन्य लोकमान्यता के अनुसार, जब बंदरों को मृत्यु का संकेत मिलता है तो वे जंगल में दीमक के बिल (टर्माइट माउंड) के पास चले जाते हैं और वहां लेटकर अपनी अंतिम सांस लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे अपने शरीर को प्रकृति को समर्पित कर देते हैं। यदि कोई बंदर किसी दुर्घटना या शिकार की वजह से मर जाए, तो अन्य बंदर उसके शव को दीमक के बिल के पास छोड़ आते हैं।
हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि इन बातों का स्पष्ट प्रमाण किसी शास्त्र या प्राचीन धार्मिक ग्रंथ में नहीं मिलता। यह अधिकतर लोककथाओं और जनमान्यताओं में ही सुनने को मिलता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक शोध और प्राइमेटोलॉजी (बंदरों और बंदर प्रजातियों का अध्ययन) इस विषय पर कुछ अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, बंदरों समेत कई जंगली जानवरों में यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वे मृत्यु के समय अपने समूह से अलग हो जाते हैं।
इसके पीछे दो मुख्य कारण बताए जाते हैं –
सुरक्षा की प्रवृत्ति – जब कोई जानवर बीमार या कमजोर होता है, तो वह शिकारी जीवों के लिए आसान शिकार बन सकता है। अगर वह अपने झुंड के साथ रहेगा, तो पूरे झुंड पर हमला होने का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए ऐसे हालात में वह खुद को अलग कर लेता है ताकि दूसरों पर खतरा न आए।
प्रकृति के प्रति सहजता – कई जानवर मृत्यु से पहले शांत और सुरक्षित स्थान चुनते हैं। यह उनकी सहज प्रवृत्ति होती है। बंदरों में भी यह गुण पाया जाता है। यही कारण है कि वे मृत्यु से पहले किसी पेड़, गुफा या एकांत जगह का चुनाव करते हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं कि यह पूरी तरह जैविक और स्वाभाविक प्रक्रिया है। इंसानों की तरह बंदर भी सामाजिक प्राणी हैं, लेकिन जीवन के अंतिम समय में वे समूह से अलग हो जाते हैं। यही वजह है कि लोग अक्सर बंदरों को मरते हुए नहीं देख पाते और इसे धार्मिक मान्यताओं या रहस्यमयी बातों से जोड़ देते हैं।
धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मेल
धर्म और विज्ञान दोनों की अपनी-अपनी बातें हैं। धर्म कहता है कि यह हनुमान जी के आशीर्वाद का परिणाम है कि बंदर कभी सबके सामने मृत्यु को प्राप्त नहीं होते। वहीं विज्ञान कहता है कि यह उनकी सहज प्रवृत्ति और सुरक्षा की आवश्यकता का परिणाम है।
दोनों ही दृष्टिकोण यह मानते हैं कि बंदर मृत्यु से पहले अलग स्थान चुनते हैं और इस कारण आम लोगों को ऐसा लगता है कि वे रहस्यमय तरीके से अंत करते हैं।
बंदरों से जुड़ी यह मान्यता कि वे सबके सामने नहीं मरते, धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों नजरिए से दिलचस्प है। धार्मिक कथाएं इसे भगवान राम से मिले वरदान से जोड़ती हैं, जबकि वैज्ञानिक इसे उनकी सहज और प्राकृतिक प्रवृत्ति बताते हैं।
सच चाहे जो भी हो, यह निश्चित है कि बंदरों का जीवन और उनकी प्रवृत्तियां इंसानों को हमेशा से आकर्षित करती रही हैं। वे न सिर्फ हनुमान जी के प्रतीक हैं, बल्कि प्रकृति के रहस्यों को समझने का भी एक माध्यम हैं।
डिस्क्लेमर: यहां hotspicystories.com पर दी गई जानकारी लोकमान्यताओं, धार्मिक कथाओं और वैज्ञानिक अध्ययनों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी देना है। किसी भी प्रकार की मान्यता को अंतिम सत्य मानने से पहले विशेषज्ञ या विद्वान की राय लेना उचित होगा।