🌿 हरीयाली तीज व्रत कथा 2025
(सावन शुक्ल त्रयोदशी कथा)
बहुत समय पहले, देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपना पति बनाने के लिए १०८ जन्मों तक कठोर तपस्या की। परन्तु शिव ने पार्वती की भक्ति की परीक्षा इस जन्म में ली। वह गंगा तट पर बैठे हुए वर्षों तक उपवास में रत रहीं, भोजन न ग्रहण किया, और केवल सूखे पत्तों से अपना पाचन नियंत्रित किया।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर बताया, “ईश्वर की सच्ची भक्ति, तपस्या और आत्मिक शुद्धि के द्वारा ही पति और जीवन की मंज़िल मिलती है।” उस क्षण से, पार्वती के सम्पूर्ण समर्पण और संयम को देखकर शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा।
इस घटना ने श्रावण शुक्ल तृतीया यानी हरीयाली तीज का आरंभ किया — एक ऐसा दिन जब शिव‑पार्वती की दिव्य पुनर्मिलन की स्मृति रहती है।
पूजा विधि और व्रत रीतियाँ ✨
1. व्रत का संकल्प
तीज की तिथि शुरू होते ही सुबह, व्रत-संकल्प कर पति की लंबी आयु अथवा अच्छे वर की कामना करते हुए दिनचर्या आरंभ होती है।
2. स्नान और सजावट
साफ-सुथरे वस्त्र पहनें, सोलह श्रृंगार (गहने, मेहँदी, बिंदी, सिंदूर आदि) से श्रृंगारित हों।
3. पूजा और कथा पाठ
भगवान शिव व माता पार्वती की प्रतिमा या फोटो स्थापित करते हुए, मेवा, फल, गर्भ एवं घी से दीपक प्रज्वलित करें। कथा सुनकर या पढ़कर श्रद्धा से पूजा पूर्ण करें।
5. झूला और लोकगीत
स्वयं या समुदाय के साथ झूले पर झूलें, पारंपरिक लोकगीत गाएं और सामूहिक उत्सव में भाग लें।
4. क्षेत्रीय परंपराएँ
– सिंदारा (माँ से बेटी को भेजा गया सजावटी तोहफ़ा जिसमें गहने और मिठाइयाँ शामिल होतीं हैं)।
– खाई जाने वाली पारंपरिक मिठाइयाँ जैसे घेवर, खीर, पंजामृत।
6. व्रत का पारण
अगली सुबह, पूजा समाप्ति के पश्चात पारण करें और परिवार में खुशियाँ बाँटें।
कथा का गूढ़ अर्थ और आधुनिक संदेश
- विश्वास और समर्पण: पार्वती की तपस्या यह बताती है कि सच्ची भक्ति अंततः सफलता की चाबी बनती है
- प्रकृति का सम्मान: तीज monsoon के मौसम में आती है, हरी रंग पहनना हमें प्रकृति से जोड़ता है
- शाश्वत प्रेम और शक्ति: यह कथा महिलाओं की आंतरिक शक्ति, धीरज और संयम को सम्मान देती है
- सामाजिक जुड़ाव: झूले, गीत, व्रत और दीक्षा सभी मिलकर महिला समुदाय की आत्मीयता और आनंद को उजागर करते हैं