इंदौर में आयोजित एक खास कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शिरकत की। इस अवसर पर मध्य प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री प्रह्लाद पटेल द्वारा लिखी गई पुस्तक “नर्मदा परिक्रमा” का विमोचन किया गया। यह पुस्तक न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय समाज और अध्यात्म के गहरे मूल्यों को भी सामने लाती है।
कार्यक्रम का महत्व
नर्मदा नदी भारत की प्रमुख पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है। इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और लोककथाओं में भी मिलता है। नर्मदा परिक्रमा करना हिंदू परंपरा में एक विशेष धार्मिक यात्रा मानी जाती है। इस यात्रा के माध्यम से श्रद्धालु नदी के किनारों पर स्थित गांवों, मंदिरों और प्राकृतिक स्थलों का दर्शन करते हैं। प्रह्लाद पटेल द्वारा लिखी गई इस पुस्तक में नर्मदा परिक्रमा के अनुभवों, ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक मूल्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
RSS प्रमुख मोहन भागवत और मुख्यमंत्री मोहन यादव जैसे वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि नर्मदा केवल एक नदी ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
मोहन भागवत का संबोधन
कार्यक्रम में मोहन भागवत ने समाज और धर्म से जुड़े कई गहन विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि दुनिया में अक्सर यह चर्चा होती है कि “भगवान एक हैं या अनेक?”। इस सवाल पर अलग-अलग मत और विचारधाराएँ सामने आती हैं, जो कई बार विवाद और टकराव का कारण भी बन जाती हैं।
भागवत ने साफ शब्दों में कहा कि हमारे दर्शन और भारतीय विचारधारा में इस तरह के विवाद की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमेशा यह संदेश दिया कि भगवान केवल एक हैं। जब भगवान एक ही हैं, तो यह टकराव निरर्थक हो जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि हमारी जीवन पद्धति इस सोच पर आधारित है कि हम सब एक हैं। लेकिन असल समस्या तब शुरू होती है जब व्यवहार में यह भावना नहीं झलकती। समाज में अक्सर लोग खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगते हैं। यही अहंकार और भेदभाव टकराव की जड़ बनता है।
टकराव की जड़: श्रेष्ठता का भ्रम
मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि दुनिया में संघर्ष और विवाद इसलिए पैदा होते हैं क्योंकि एक व्यक्ति, एक समुदाय या एक राष्ट्र यह मानने लगता है कि वह दूसरों से बड़ा और श्रेष्ठ है। जब यह भावना बढ़ती है, तो विभाजन, असमानता और हिंसा जन्म लेती है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर हम सच में मान लें कि भगवान एक ही हैं और हम सब उसी के अंश हैं, तो किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रहेगा। सबको बराबर का दर्जा मिलेगा और समाज में आपसी भाईचारा बढ़ेगा।
भारतीय संस्कृति का संदेश
भारतीय संस्कृति हमेशा से “वसुधैव कुटुंबकम्” यानी संपूर्ण विश्व एक परिवार है की भावना पर आधारित रही है। हमारे वेद, उपनिषद और गीता जैसे ग्रंथ इस विचार को मजबूती से रखते हैं। मोहन भागवत ने कहा कि अगर हम इस सोच को अपने जीवन में उतारें तो दुनिया से टकराव और हिंसा अपने आप खत्म हो जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि केवल धार्मिक मंचों पर या उपदेशों में इस विचार को दोहराना काफी नहीं है। इसे व्यवहार में लाना होगा। परिवार, समाज और राष्ट्र स्तर पर इस सोच को अपनाना ही वास्तविक परिवर्तन लाएगा।
नर्मदा परिक्रमा का आध्यात्मिक महत्व
नर्मदा नदी की परिक्रमा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है। यह यात्रा इंसान को प्रकृति, समाज और आध्यात्मिकता से जोड़ती है। इस यात्रा में हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हुए व्यक्ति नदी किनारे बसे गाँवों, विविध संस्कृतियों और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव करता है।
मोहन भागवत ने कहा कि नर्मदा परिक्रमा हमें यह सिखाती है कि जीवन का असली अर्थ भेदभाव और श्रेष्ठता की भावना में नहीं, बल्कि एकता, सरलता और त्याग में छिपा है। यह यात्रा हमें यह भी याद दिलाती है कि इंसान और प्रकृति का रिश्ता कितना गहरा और अनमोल है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव और प्रह्लाद पटेल की भूमिका
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी अपने विचार रखे और कहा कि नर्मदा केवल मध्य प्रदेश की जीवनरेखा नहीं है, बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर है। उन्होंने इस पुस्तक को आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।
वहीं, प्रह्लाद पटेल ने अपने अनुभव साझा किए और कहा कि नर्मदा परिक्रमा ने उनके जीवन को एक नया दृष्टिकोण दिया। इस पुस्तक का उद्देश्य है कि लोग नर्मदा की परिक्रमा के महत्व और उससे जुड़े आध्यात्मिक संदेश को समझें।
इंदौर का यह कार्यक्रम केवल एक पुस्तक विमोचन नहीं था, बल्कि भारतीय संस्कृति और दर्शन के गहरे संदेश को पुनः जीवंत करने का प्रयास था। मोहन भागवत का यह संदेश कि “भगवान एक हैं और हम सब उसी के अंश हैं” समाज को आपसी भाईचारे और एकता की ओर ले जाने वाला है।
आज जब दुनिया कई तरह के टकराव, हिंसा और असमानता से जूझ रही है, तब यह विचार और भी प्रासंगिक हो जाता है। अगर हम सच में इस सोच को व्यवहार में उतार दें कि हम सब एक हैं, तो समाज अधिक शांतिपूर्ण, समरस और मजबूत बन सकता है।