दिल्ली इस समय प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति का सामना कर रही है। यमुना नदी का जलस्तर अचानक बढ़कर 207.41 मीटर तक पहुँच गया है। यह स्तर अब तक दर्ज किए गए सबसे ऊँचे जलस्तरों में से तीसरे स्थान पर आता है। बढ़ते जलस्तर ने राजधानी के निचले इलाकों के साथ-साथ निगमबोध घाट जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है।
निगमबोध घाट दिल्ली का सबसे पुराना और व्यस्ततम श्मशान घाट है। यहाँ रोजाना बड़ी संख्या में अंतिम संस्कार किए जाते हैं। लेकिन यमुना का पानी घाट तक पहुँच चुका है और यदि यह और बढ़ा तो यहाँ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। यह स्थिति न केवल परिवारों के लिए मानसिक और भावनात्मक परेशानी का कारण बनेगी बल्कि प्रशासन के सामने भी एक बड़ी चुनौती पेश करेगी।
जलस्तर बढ़ने के कारण
यमुना का जलस्तर बढ़ने के पीछे कई वजहें मानी जा रही हैं।
पर्वतीय इलाकों में बारिश – उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हाल ही में हुई भारी वर्षा ने यमुना की धारा को तेज़ कर दिया है।
हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़ा जाना – हरियाणा के यमुनानगर स्थित हथिनीकुंड बैराज से लाखों क्यूसेक पानी छोड़े जाने के कारण अचानक नदी का स्तर बढ़ा।
जलवायु असंतुलन – बदलते मौसम पैटर्न और असामान्य वर्षा भी बाढ़ की गंभीरता को और बढ़ा रहे हैं।
निगमबोध घाट की चुनौती
निगमबोध घाट पर प्रतिदिन कई शवों का अंतिम संस्कार होता है। यहाँ लकड़ी से चिता, इलेक्ट्रिक शवदाह गृह और सीएनजी आधारित आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। लेकिन जैसे ही यमुना का पानी घाट के चबूतरे तक पहुँचता है, यहाँ की व्यवस्था बिगड़ने लगती है।
लकड़ी की चिताओं के स्थान जलमग्न हो सकते हैं।
इलेक्ट्रिक और सीएनजी शवदाह गृह तक पहुँचने में कठिनाई होगी।
यदि जलस्तर और बढ़ा तो अंतिम संस्कार पूरी तरह ठप हो सकता है।
प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि वैकल्पिक व्यवस्था करने पर विचार किया जा रहा है, ताकि शोकाकुल परिवारों को परेशानी न हो।
प्रभावित लोग और इलाके
यमुना के आसपास बसे इलाकों में हजारों लोग इस बाढ़ से प्रभावित हो रहे हैं।
घरों में पानी घुसने के कारण लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ रहा है।
कई परिवार अपने सामान और पशुओं को छोड़कर राहत शिविरों की ओर जा रहे हैं।
स्कूलों और बाज़ारों के बंद होने से सामान्य जीवन ठप हो गया है।
सड़कों पर जलभराव और ट्रैफिक जाम आम लोगों के लिए बड़ी समस्या बन गया है।
प्रशासन की तैयारियाँ
दिल्ली सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग लगातार हालात पर नजर बनाए हुए हैं।
नावों और बोट्स की मदद से लोगों को सुरक्षित निकाला जा रहा है।
प्रभावित परिवारों के लिए अस्थायी राहत शिविर बनाए गए हैं, जहाँ भोजन और पानी की व्यवस्था है।
मेडिकल टीमों को तैनात किया गया है ताकि बाढ़ के बाद फैलने वाली बीमारियों पर नियंत्रण रखा जा सके।
पुलिस और सिविल डिफेंस टीम लगातार निगरानी कर रही हैं।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर
बाढ़ का सबसे गंभीर असर आम लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ता है।
गंदा पानी जब बस्तियों में घुसता है तो डेंगू, मलेरिया और टायफाइड जैसी बीमारियाँ फैलने लगती हैं।
दूषित पानी पीने से हैजा और पेट संबंधी रोग हो सकते हैं।
नदी का असंतुलित बहाव आसपास की वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को भी नुकसान पहुँचाता है।
इतिहास की झलक
दिल्ली में यमुना बार-बार अपने उफान से लोगों को डराती रही है।
साल 1978 की बाढ़ सबसे भयावह मानी जाती है, जब जलस्तर 207.49 मीटर तक गया था।
2013 और 2023 में भी राजधानी को इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा था।
इस बार 207.41 मीटर का स्तर दर्ज हुआ है, जो तीसरे स्थान पर आता है।
दीर्घकालिक समाधान की ज़रूरत
हर साल बाढ़ जैसी स्थिति बनती है, लेकिन स्थायी समाधान अब तक नहीं निकला। विशेषज्ञों का मानना है कि—
यमुना किनारे तटबंधों को मज़बूत करना होगा।
अवैध निर्माण और अतिक्रमण पर सख्ती से रोक लगानी होगी।
जल निकासी व्यवस्था को आधुनिक बनाना ज़रूरी है।
बारिश और बाढ़ की स्थिति में पहले से ही राहत शिविर और योजनाएँ तैयार रहनी चाहिए।
यमुना का जलस्तर 207.41 मीटर पहुँचना राजधानी के लिए सिर्फ एक आंकड़ा नहीं बल्कि गंभीर चेतावनी है। यह स्थिति हमें याद दिलाती है कि प्रकृति को नज़रअंदाज़ करना कितना खतरनाक हो सकता है। निगमबोध घाट जैसे धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल पर पानी का घुसना यह बताता है कि समस्या कितनी गहरी है।
जरूरी है कि प्रशासन अल्पकालिक राहत के साथ-साथ दीर्घकालिक समाधान भी खोजे। वहीं नागरिकों को भी सतर्क रहकर सरकार का सहयोग करना होगा। यमुना का यह उफान हमें सिखाता है कि हमें पर्यावरण और नदियों के साथ संतुलन बनाकर जीना होगा, वरना हर साल ऐसी त्रासदी हमारे सामने खड़ी रहेगी।
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